मधुर हास्य से ओतप्रोत कृति है- जिज्जी
- पुस्तक- जिज्जी ‘ उपन्यास
- विधा : गद्य
- लेखिका : नेहा शर्मा
- समीक्षक-कमलेश वाजपेयी
- प्रकाशक : यूनीक फ़ील पब्लिकेशन ‘एक पाठकीय प्रतिक्रिया ‘
दुबई निवासी, नेहा शर्मा जी, अनेक वर्षों से, हिन्दी – साहित्य के अनेक सम्मानित, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मन्चों का अत्यंत कुशलता से संचालन कर रही हैं. जिनमें समय समय पर विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं का सफलतापूर्वक आयोजन भी होता रहता है.
वे बहुत समय से हिन्दी की, सभी विधाओं में लेखन – कार्य भी कर रही हैं..
उनका एक काव्य-संग्रह ‘ लहरें नेह की ‘ भी बहुत चर्चित रहा है..
मधुर हास्य से ओतप्रोत ‘ जिज्जी ‘ उनकी नवीनतम क्रति है. पुस्तक का मुद्रण भी बहुत आकर्षक है.
इसको पढ़ना, एक अत्यंत सुखद अनुभूति देता है.
संयुक्त परिवार, वर्तमान समय में कम देखे जाते हैं.
फिर भी कुछ स्थानों पर संयुक्त परिवार के महत्वपूर्ण सम्बन्धों को यथा सम्भव निभाने का प्रयास होता है.
‘जिज्जी` के शशि और भानु भी, यही प्रयास करते दिखते हैं..
जिज्जी हमेशा अपने ‘ नन्द ‘ होने का अनुचित लाभ उठाती रहती हैं.. शशि और भानु, अपना भरसक प्रयास करते हैं कि जिज्जी की सभी उचित – अनुचित मांगों का सम्मान हो.
पुस्तक का प्रारम्भ ही बहुत रोचक है जिसमें शशि लेखन प्रारम्भ करने से पहले स्वगत – भाषण करती है .
” देखना बेट्टा बहुत लम्बा लिखेंगे .. ” एक लाइन लिखते ही, बेल बज जाती है और आदरणीया ” जिज्जी ” , सपरिवार प्रकट हो जाती हैं..!
जिज्जी अक्सर किसी न किसी बहाने से सपरिवार, बच्चों और जिज्जा सहित. शशि के घर पर ही चाय, नाश्ता, खाना ग्रहण करती हैं. ऊपर से अहसान भी जताती हैं..!
प्रायः किसी न किसी बहाने से शशि से ‘टिफ़िन भी ‘ मंगवा लेती हैं.. नियमित टिफ़िन पहुंचाते.. शशि को ‘ टिफ़िन– वूमेन ‘ की फीलिंग्स आने लगती है.
भानु और शशि के बीच की नोकझोंक भी, कुछ कम मज़ेदार नहीं है.. जब वह भानु को, शहर में एक प्लाट या वन बी एच के, ख़रीदने की भूमिका बनाती है.. और शब्दों में शहद घोलती है..
‘सौम्य – हास्य’ पुस्तक में सर्वत्र बिखरा पड़ा है और पढ़ते ही बरबस होंटों पर मुस्कान आ जाती है..!
प्रारम्भ से अन्त तक पाठक का आकर्षण बना रहता है. एक बार प्रारम्भ कर के बीच में छोड़ना कठिन है..
शशि के परिवार में ” बिटटो मौसी ” का आना, शशि और भानु की मुश्किलें कुछ कम करता है. और उन्हें कुछ सुरक्षा प्रदान करता है.
पुस्तक में एक से एक रोचक प्रसंग हैं.. ” जिज्जी ” जी का पैर एक बर्तन में फंस जाता है.. और एक नयी मुसीबत शुरू हो जाती है..! उनके बच्चे उन्हें डराते हैं ” पैर काटना पड़ सकता है ” सब पर भारी जिज्जी, डर जाती हैं.
पुस्तक पढ़ते हुए ‘ मधुर मुस्कान’ आपके साथ हमेशा बनी रहेगी.. यह ‘ गारेन्टी ‘ है.
अन्त में ‘ जिज्जी ‘ कमेटी उठाने के एक प्रकरण में भी संदिग्ध हो जाती हैं..
थानेदार के ‘ समोसे ‘ ठूंसने का वर्णन भी मज़ेदार है.
जिज्जी के एक से बढ़कर एक कारनामों से पुस्तक भरी हुई है.
सभी वर्णन बहुत ही रोचक अन्दाज़ में, लेखिका द्वारा किये गये हैं.. नेहा जी हास्य बहुत अच्छा लिखती हैं..
इस सुन्दर पुस्तक के लिए बहुत बधाई अनन्त शुभकामनाएं.