Muzaffarpur: शायद यह लिखना या पढ़ना थोड़ा अटपटा लगे परंतु मेरी कलम इतनी बलवान नहीं की इस पुस्तक की समीक्षा कर पाऊँ आज तक मैंने अनगिनत पुस्तकों की समीक्षा लिखी है परंतु यह पुस्तक पढ़ने के बाद मेरा पूरा नजरिया ही बदल गया है। प्रूफ रीड करते समय मेरे नयनों की नमी बढ़ती जा रही थी और आँसू आँखों की कोर का बांध तोड़कर बाहर आने को आतुर थे।
कोई ही पाठक होगा जिसकी यह पुस्तक पढ़कर आँख नाम न हो व भाव विभोर न हो। माँ से प्यार होना आम बात हो सकती है पर माँ में जीवन जीना यह आम बात नही है। न जाने कितनी पुस्तकें कितने पुराण कितने काव्य कितना साहित्य इस माँ शब्द पर रचा गया है। इस पुस्तक को पढ़ने के बाद यथार्थ धरा पर उतरी इस कलम को बारम्बार प्रणाम ही करने को मन करता है।
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यदि साहित्यकार बनकर इसकी समीक्षा लिखूँ तो शायद कुछ त्रुटियाँ निकल भी आए परंतु जब मैं स्वयं एक पाठक बनकर पढती व देखती हूँ तो लगता है यह पुस्तक उन सभी माओं के लिए है जो अपना फर्ज अपने बच्चों के लिए माँ शब्द पर हक पाने से लेकर अंतिम साँस तक निभाती ही रहती है। सेल्यूट है लेखिका की उस बेबाक कलम को जिसने अपनी इस कलम के द्वारा माँ की अहमियत के साक्षात दर्शन करा दिए हैं।
साथ ही ऐसे समाज पर दुख भी होता है जिनकी वजह से उनके अपने कभी लौटकर नहीं आ पाते हैं। दुख इस बात का भी है की समाज में आज भी कुछ ऐेसी घटिया मानसिकता के लोग उपस्थित हैं जो रिश्तों की कदर नहीं जानते। जिनकी वजह से कुछ अनमोल रिश्ते काँच की तरह बिखर जाते हैं। अपने दूर हो जाते हैं। भावना जी की एक पंक्ति है ईश्वर सब देखता है। पर पता नहीं ईश्वर देखकर भी कभी देखकर भी अनदेखा अनजाना क्यों बन जाता है? मैं बस यही प्रार्थना करती हूँ की ईश्वर जीवन में कुछ भी करे परंतु बच्चों से उनकी माँ को कभी दूर न करे।
कभी-कभी हमारा कठिन समय हम इसलिए भी शायद देखते हैं ताकि आने वाले समय के लिए हम मजबूती से खड़े हो सके। भावना ने बताया की किस तरह इतनी बार भी अपने कार्यों में असफल hहोने के बाद वह टूट जाती थी पर उसकी माँ उसे प्रेम से संभाल लेती थी। इससे एक तरफ भावना का मेहनती स्वभाव हमें हिम्मत से भर देता है दूसरा माँ जो हमेशा हमारी ही चिंता करती रहती है उसके हमें और भी निकट ले आता है। कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता उसे किस तरह से निभाया जा रहा है किया जा रहा है वह मायने रखता है। यदि पूर्ण निष्ठा से किया जाए तो सफलता मिलती है। मुझे भी आशा है की भावना को उसके कीये गए कार्यों व प्रयासों में सफलता अवश्य मिलेगी।
इसे भी पढ़े-भावना सागर बत्रा की कृति “माँ तुम जीवंत हो” वाकई में जीवंत कृति है।
बचपन में जैसे हम दूसरों के घरों में जाकर कोई चीज देखते थे और उससे खेलते थे तो हमारे माता-पिता या बंधु-बांधव को लगता था कि हमें ये चीज खुश करेगी और हमें वह चीज लाकर दे देते थे। हम उसके साथ एक दिन या आधा दिन खेलते फिर उसे छोड़ देते शायद मुड़कर उसकी तरफ भी नहीं देखते और जब वह वस्तु खो जाती तो हमें याद की हमारे पास वह वस्तु थी पर कहाँ है यह नहीं पता फिर उसे फिर से ढूँढने लगते।
बस यही होता है जो हमारे पास है हमें उसकी कभी अहमियत नहीं होती उसके जाने के बाद हम उन्हें ढूंढते रहते हैं। भावना की इस पुस्तक में यह भी संदेश छुपा है की समय रहते यदि हम रिश्तों की परवाह कर लें तो प्रत्येक रिश्ता खूबसूरत बन जाएगा। फिर काभी कोई रिश्ता किसी भी साजिश का शिकार नहीं होगा कोई घर नहीं बिखरेगा। कोई माँ, पिता, भाई, बहन अपने रिश्ते नातों से दूर नहीं होगी।
धन्यवाद
नेहा शर्मा
दुबई
साहित्य अर्पण संथापिका